रविवार, 29 सितंबर 2013

मैं हूँ...

-अंकित मोदी 
मैं हूँ ,मैं हूँ गुजरते लम्हों में भी,मैं हूँ गुजरे हुए लम्हों में भी |
आज में मैं चहकता हूँ,कल की खुशबू  में महकता भी हूँ |
कुछ हिस्सा मेरा अभी साथ है मेरे,कुछ हिस्सा छूटा पास है तेरे |
कुछ ज़र्रे मेरे तो मुझ मे बाकी हैं अभी,कुछ यादों में रह गए तन्हा तभी |

कभी खुद को समझता हूँ, कभी खुद को उड्धेलता हूँ,कुछ कम सा लगता हूँ कल से, जब खुद को टटोलता हूँ |
है कुछ तो मेरा कल में छूटा,हुआ कुछ तो है जो मैं अब हूँ टूटा |क्या है, क्यूँ है,  बेखबर बेपता,ये क्यूँ हुआ की मैं खुद से रूठा |
मैं हूँ अभी या था तभी,
खो
जाता हूँ कभी कभी |धुमिल लम्हों के सायें में, सो लेता हूँ जब कभी,तो फिर उन सपनो के फलक से,उस नींद की गिरफ्त से,चाहता हूँ बाहर आऊँ, पर हारता हूँ जब कभी,तो फिर बस वही कल हूँ चाहता,खुद का खुद से मेरा वही राबता,नहीं है कोई आसमानी ख्वाहिशें ,बस मैं, मेरा कल और जो खुद से साथ था |
( लेखक वरिष्ठ स्नातक छात्र हैं )

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