- रवि मीणा
कब ये मुरझाते चहेरे लहलहायेंगे ?
कब तक ये हाथों में कटोरा फैलायेंगे ?
क्या कभी यह हाथों का कटोरा
धानो से भर पायेगा ?
मुझको तो बस इतना सा बता दे
ओ भारत माँ !
कब तक ये आसमान के पंछी तारों पर,
रस्सी पर, डंडों पर, झूलेंगे ?
कब भारत माँ, माँ तू बनकर इनको बसेरा देगी ?
कब तू इनको चुगेरा देगी ?
ओ भारत माँ !-२
कब तक तेरी संतानों को
ये पापी तडपायेंगे ?
क्या कभी तेरे भी ये बच्चे बड़े हो पायेंगे ?
मुझको तो बस इतना सा बता दे
ओ भारत माँ !
कब तक इन पंछी की पांख कटेंगी ?
सांस काटेंगी, आस मिटेंगी ?
कब तू भारत माँ इनका उत्थान करेगी ?
कब तू इनके परों में जान भरेगी ?
ओ भारत माँ !
कब तक हम हिन्दू होंगे ?
कब तक हम मुस्लिम होंगे ?
क्या कभी इन मोरपंख-सी पाँखो का
इक दल भी बन पायेगा ?
मुझको तो बस इतना सा बता दे !
ओ भारत माँ !
क्या कभी इन पंच्छिगन का कभी
इक गन भी इक मन भी
इक दल भी बन पायेगा?
ओ भारत माँ !
कब तू एक संग इनको
अपने बरगद में बसेरा देगी ?
एक संग तू इनको
अपनी छाया में चुगेरा देगी ?
ओ भारत माँ !
कब तक परदेशी आयेंगे ?
कब तक हम उनकी चीजो को अपनाएंगे?
क्या कभी फिर से हम स्वदेशी बन पायेंगे ?
मुझको तो बस इतना सा बता दे
ओ भारत माँ !
कब तक सूरज के मोहताज
छिपे हुए सूरज को आतप दिखलायेंगे,
अपनी बातें मनवाएंगे,
अपना राज चलाएंगे?
ओ भारत माँ !
कब तू सोनेकी चिड़िया बन,
अपनी स्वर्ण-चमक से
इनकी आँखोंको झुलसाएगी?
अपनी समृद्धि से तू
इनकी आँखों को तरसाएगी ?
कब तू हमको चुगेरा देगी ?
कब तू हमको बसेरा देगी?
चलो छोडो, सबसे तुम मुंह मोड़ो
मुझको तो बस इतना सा बता दे
ओ भारत माँ !
कब तू पापी को सजा देगी ?
अत्याचारी को सजा देगी ?
कब हमको आजादी की फिजा देगी?
ओ भारत माँ !
कब ये मुरझाते चहेरे लहलहायेंगे ?
कब तक ये हाथों में कटोरा फैलायेंगे ?
क्या कभी यह हाथों का कटोरा
धानो से भर पायेगा ?
मुझको तो बस इतना सा बता दे
ओ भारत माँ !
कब तक ये आसमान के पंछी तारों पर,
रस्सी पर, डंडों पर, झूलेंगे ?
कब भारत माँ, माँ तू बनकर इनको बसेरा देगी ?
कब तू इनको चुगेरा देगी ?
ओ भारत माँ !-२
कब तक तेरी संतानों को
ये पापी तडपायेंगे ?
क्या कभी तेरे भी ये बच्चे बड़े हो पायेंगे ?
मुझको तो बस इतना सा बता दे
ओ भारत माँ !
कब तक इन पंछी की पांख कटेंगी ?
सांस काटेंगी, आस मिटेंगी ?
कब तू भारत माँ इनका उत्थान करेगी ?
कब तू इनके परों में जान भरेगी ?
ओ भारत माँ !
कब तक हम हिन्दू होंगे ?
कब तक हम मुस्लिम होंगे ?
क्या कभी इन मोरपंख-सी पाँखो का
इक दल भी बन पायेगा ?
मुझको तो बस इतना सा बता दे !
ओ भारत माँ !
क्या कभी इन पंच्छिगन का कभी
इक गन भी इक मन भी
इक दल भी बन पायेगा?
ओ भारत माँ !
कब तू एक संग इनको
अपने बरगद में बसेरा देगी ?
एक संग तू इनको
अपनी छाया में चुगेरा देगी ?
ओ भारत माँ !
कब तक परदेशी आयेंगे ?
कब तक हम उनकी चीजो को अपनाएंगे?
क्या कभी फिर से हम स्वदेशी बन पायेंगे ?
मुझको तो बस इतना सा बता दे
ओ भारत माँ !
कब तक सूरज के मोहताज
छिपे हुए सूरज को आतप दिखलायेंगे,
अपनी बातें मनवाएंगे,
अपना राज चलाएंगे?
ओ भारत माँ !
कब तू सोनेकी चिड़िया बन,
अपनी स्वर्ण-चमक से
इनकी आँखोंको झुलसाएगी?
अपनी समृद्धि से तू
इनकी आँखों को तरसाएगी ?
कब तू हमको चुगेरा देगी ?
कब तू हमको बसेरा देगी?
चलो छोडो, सबसे तुम मुंह मोड़ो
मुझको तो बस इतना सा बता दे
ओ भारत माँ !
कब तू पापी को सजा देगी ?
अत्याचारी को सजा देगी ?
कब हमको आजादी की फिजा देगी?
ओ भारत माँ !
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