बुधवार, 25 सितंबर 2013

कब तक ?

- रवि मीणा


कब ये मुरझाते चहेरे लहलहायेंगे ?

कब तक ये हाथों में कटोरा फैलायेंगे ?

क्या कभी यह हाथों का कटोरा

धानो से भर पायेगा ?

मुझको तो बस इतना सा बता दे

ओ भारत माँ !

कब तक ये आसमान के पंछी तारों पर,

रस्सी पर, डंडों पर, झूलेंगे ?

कब भारत माँ, माँ तू बनकर इनको बसेरा देगी ?

कब तू इनको चुगेरा देगी ?

ओ भारत माँ !-२


कब तक तेरी संतानों को

ये पापी तडपायेंगे ?

क्या कभी तेरे भी ये बच्चे बड़े हो पायेंगे ?

मुझको तो बस इतना सा बता दे

ओ भारत माँ !

कब तक इन पंछी की पांख कटेंगी ?

सांस काटेंगी, आस मिटेंगी ?

कब तू भारत माँ इनका उत्थान करेगी ?

कब तू इनके परों में जान भरेगी ?

ओ भारत माँ !

कब तक हम हिन्दू होंगे ?

कब तक हम मुस्लिम होंगे ?

क्या कभी इन मोरपंख-सी पाँखो का

इक दल भी बन पायेगा ?

मुझको तो बस इतना सा बता दे !

ओ भारत माँ !

क्या कभी इन पंच्छिगन का कभी

इक गन भी इक मन भी

इक दल भी बन पायेगा?

ओ भारत माँ !

कब तू एक संग इनको

अपने बरगद में बसेरा देगी ?

एक संग तू इनको

अपनी छाया में चुगेरा देगी ?

ओ भारत माँ !

कब तक परदेशी आयेंगे ?

कब तक हम उनकी चीजो को अपनाएंगे?

क्या कभी फिर से हम स्वदेशी बन पायेंगे ?

मुझको तो बस इतना सा बता दे

ओ भारत माँ !

कब तक सूरज के मोहताज

छिपे हुए सूरज को आतप दिखलायेंगे,

अपनी बातें मनवाएंगे,

अपना राज चलाएंगे?

ओ भारत माँ !

कब तू सोनेकी चिड़िया बन,

अपनी स्वर्ण-चमक से

इनकी आँखोंको झुलसाएगी?

अपनी समृद्धि से तू

इनकी आँखों को तरसाएगी ?

कब तू हमको चुगेरा देगी ?

कब तू हमको बसेरा देगी?

चलो छोडो, सबसे तुम मुंह मोड़ो

मुझको तो बस इतना सा बता दे

ओ भारत माँ !

कब तू पापी को सजा देगी ?

अत्याचारी को सजा देगी ?

कब हमको आजादी की फिजा देगी?

ओ भारत माँ !


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