शनिवार, 28 सितंबर 2013

चश्मा

- नफ़स

बहुत आसाँ होता है कि बस आवाज़ कर दीजे
दी सभी को अक्ल है तो सोचना भी चाहिए |

धब्ब्बे स्याह हों फिर भी धुंधले पड़ ही जाते हैं
वक़्त का ना फ़र्क हो , कुछ तो ऐसा चाहिए |

मशगूल रहना ही ज़रूरी जब हो गया 'नफ़स'
रख के चश्मा आँख पर , कलम घिसते जाइये |

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