बुधवार, 6 नवंबर 2013

साहित्य और हँसी

हाँ! जब साहित्य मेरे पास आता है तो मैं बस उसे हँसाता हूँ ।
थका हारा विचारों का मारा 'वाद' से सना अलंकारो से बना इसके, उसके, सबके दर्द का बयान वेदना के बाद का निचोड़ा सा ज्ञान जब हर कोई नया कहने में लगा है मैं बात वही दोहराता हूँ हाँ! जब साहित्य मेरे पास आता है तो मैं बस उसे हँसाता हूँ ।
दुःख में सुख और सुख में सुख की बातें मिलन में प्रकृति और विछोह में बीती राते आम आदमी के लिए महंगाई का बखान या बाज़ार की कोई आम दुकान इस कला की दुनिया में मैं जोकर हूँ अपना किरदार निभाता हूँ हाँ! जब साहित्य मेरे पास आता है तो मैं बस उसे हँसाता हूँ |
- आदित्य राज सोमानी
(आदित्य जैव प्रौद्योगिकी में द्वितीय वर्ष के छात्र हैं )

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