सोमवार, 13 जनवरी 2014

बारूद- मुट्ठी भर



बारूद की फैक्ट्री में गोले बनाये जा रहे थे| कुछ किसी पर आग बरसाने के लिए तो कुछ चट्टानें तोड़ने के लिए| बारूद का हर कण खुश था अपनी किस्मत पर, और होता भी क्यों नहीं! उसे एक मंच जो मिल गया था अपनी ऊर्जा, अपना अस्तित्त्व सिद्ध करने के लिए|

फैक्ट्री में विस्फोटक बनाने का काम बढता जा रहा था| रोज़ नई बारूद आ रही थी, नए अन्वेषण हो रहेथे| इसी बीच एक मुट्ठी बारूद बिखरकर दूर गिर गयी थी| हवा का हर एक झोंका उस मुठ्ठी भर बारूद को उसके गंतव्य तक पहुँचाने की कोशिश कर रहा था। लेकिन बारूद पहचान नहीं पा रहा था अपनी ऊर्जा को, अपने आप को| हवा के अनगिनत झोंके उस के पास से गुजर गए लेकिन बारूद इन सबसे बेखबर रहा|

एक रोज तेज बरसात हुई। मुट्ठी भर बारूद भीग गया। और दूसरी तरफ कुछ बारूद गोले में तब्दील हो चुकी थी- अपने आप को साबित करने के लिए! 

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