शुक्रवार, 21 मार्च 2014

पल दो पल आँख मिला जाना


(चित्र- द वर्ल्ड अपसाइड डाउन, इस्राहेल वान मेक्केनेम द्वारा)
रस्ते में जाते देखा था 
खिड़की से तुमको,
सोचा था मुझसे मिलने 
आज चली आई हो,
होकर पागल ख़ुशी-ख़ुशी में, 
मैनें सांकल खोल दिया था,
आज तलक नहीं आई तुम, 
पर दिल का द्वार खुला है अब तक,
आ जाओ, मिलना मत, 
बस दरवाजे को बाहर की तरफ लगा जाना,
बातें मत करना चाहे, 
बस पल दो पल आँख मिला जाना|

पंखे के नीचे लहराती तेरी 
चुन्नी को जब-जब देखा था,
तब-तब भूल विषय कक्षा का 
तुम पर नज़र गड़ा ली,
सखियों के संग आँखें झुकी होने पर भी 
कोई बात सुना डाली,
मालूम है बहुत बुरा लगता था तुमको ये सब,
तो आ जाओ इस अपराधी को 
कुछ सजा सुना जाना,
बातें मत करना चाहे, 
बस पल दो पल आँख मिला जाना|

बहुत की थी कोशिश मैंने तो 
तेरा नंबर पाने की,
तुमने सब पर रोक लगा डाली 
बस दस अक्षर बतलाने की,
मजबूरी में ख़त लिख डाले 
इच्छा जो थी धड़कन को बतलाने की,
आज तलक मैं भेज ना पाया, 
शंका थी किसी और के हाथ लगाने की,
अब वो पीले-पन्ने कमरे में उड़ते हैं 
इधर-उधर, आकर पढ़ जाना,
बातें मत करना चाहे, 
बस पल दो पल आँख मिला जाना|

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