शनिवार, 21 जून 2014

"कैसे हो तुम "

              

- रवि मीना


 


















कैसे हो तुम? बहुत दिनों से कोई सन्देश नहीं आया है,

बहुत लिखे ख़त मैंनें ही खुद, पर उत्तर अब तक नहीं पाया है|

आँखे राहे तक-तक थक गई,

दिल की धड़कन धक-धक कर गई,

अब खुद ही निकला हूँ पैदल तुम्हें ढूँढने,

पर अब तक तेरा देश नहीं आया है|

कैसे हो तुम.....


वहां बैठे-बैठे दिल में कुछ अरमान उड़े थे,

अरमां वो आपस में मिलजुल बादल बन बैठे|

प्रेम की कोई हवा चलाकर वो बदल तुम तक पहुंचाएं हैं|

बदल बरसे तो हैं पर ठंडी पवन के झोंके,

अभी मुझ तक नहीं आये हैं|  
                          
कैसे हो तुम? बहुत दिनों से कोई सन्देश नहीं आया है,

बहुत लिखे ख़त मैंनें ही खुद, पर उत्तर अब तक नहीं पाया है|



(रवि आई.आई.टी. कानपुर में द्वितीय वर्ष के छात्र हैं )

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