- रवि मीना
बहुत लिखे ख़त मैंनें
ही खुद, पर उत्तर अब तक नहीं पाया है|
आँखे राहे तक-तक थक
गई,
दिल की धड़कन धक-धक
कर गई,
अब खुद ही निकला हूँ
पैदल तुम्हें ढूँढने,
पर अब तक तेरा देश
नहीं आया है|
कैसे हो तुम.....
वहां बैठे-बैठे दिल
में कुछ अरमान उड़े थे,
अरमां वो आपस में
मिलजुल बादल बन बैठे|
प्रेम की कोई हवा चलाकर वो बदल तुम तक पहुंचाएं
हैं|
बदल बरसे तो हैं पर ठंडी पवन के झोंके,
अभी मुझ तक नहीं आये हैं|
कैसे हो तुम? बहुत
दिनों से कोई सन्देश नहीं आया है,
बहुत लिखे ख़त मैंनें
ही खुद, पर उत्तर अब तक नहीं पाया है|
(रवि आई.आई.टी. कानपुर में द्वितीय वर्ष के छात्र हैं )
(रवि आई.आई.टी. कानपुर में द्वितीय वर्ष के छात्र हैं )
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