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मंगलवार, 12 अगस्त 2014
‘टूटी रेलिंग’
- निशांत
(
चित्र
http://flickrhivemind.net
से साभार)
जैसे कोई शब्द
कौंधता है
अचानक
कुछ कविताएँ लिख जाती हैं
बस इतने भर में |
वो भी कौंधी
इसी तरह
अपने छज्जे की
टूटी रेलिंग के सहारे
न जाने कितनी कविताएँ लिए !
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